विश्व प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के बस्तर दशहरे का रथ अब जेल प्रशासन को दिया गया. दरअसल आस्था के इस विशालकाय रथ से कई ऐसी बातें जुड़ी हुई हैं, जिससे इसे कोई भी खरीदता नहीं है. बहुत समय पहले बस्तर से एक रथ भोपाल के भारत भवन भेजा गया था. उसके बाद हर साल बनने वाले विशालकाय रथ को रखने के लिए जगह नहीं होने और रथ की लकड़ियों को सड़ने से बचाने और उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए स्थानीय प्रशासन एक अलग तरह की पहल कर रहा है. इस रथ की लकड़ियों का उपयोग कैदी उसे अलग पहचान देने में करेंगे.
75 दिनों तक मनाया जाता है दशहरा
बस्तर दशहरा 75 दिनों तक मनाया जाने वाला विश्व का सबसे लंबा पर्व है. इस दौरान दो मंजिला विशालकाय रथ बनाया जाता है जो आस्था का प्रतीक है. देश-विदेश से लोग दशहरे को देखने के लिए बस्तर पहुंचते हैं. अब स्थानीय प्रशासन के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि पर्व के खत्म होने के बाद विशालकाय रथ को कहां पर रखा जाए. लेकिन इस बार प्रशासन ने पुराने बस्तर दशहरे के रथ जेल प्रशासन को देने का निर्णय लिया है. हालांकि इससे पहले प्रशासन द्वारा रथ को नीलाम किए जाने की कोशिश भी की गई लेकिन नीलामी में किसी ने हिस्सा नहीं लिया.

रथ की लकड़ियां निकलता कैदी.
इसलिए कोई नहीं खरीदना चाहता रथ
बस्तर पुरात्तव विभाग के सदस्य हेमंत कश्यप कहते हैं कि हर साल बस्तर दशहरे में बनने वाले रथ के लिए दस बकरों और 70 के करीब मांगूर मछलियों की बलि दी जाती है. लोगों में ऐसा डर है कि बलि दी हुई चीज को घर ले जाने से किसी तरह की कोई अनहोनी न हो. इस आस्था के चलते कोई भी इस रथ को नहीं खरीदता है. ऐसे में भारी भरकम रथ को रखने के लिए काफी दिक्कतें होती हैं. खुले में रखे रथ खराब हो रहे हैं, जिसे देखते हुए प्रशासन से पुराने रथ को जिसमें गोंचा का रथ भी शामिल है उसे जेल प्रशासन को दिया है.
बनेंगी कलात्मक वस्तुएं
जेल के कैदी अब इस रथ की लकड़ियों को निकाल कर कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करने में लगे हैं. इस दौरान उन कैदियों की मदद ली जा रही है जो बढ़ई का काम जानते हैं.