छत्तीसगढ़ के सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक से उत्खन्न् के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति दे दी है। इस कोल ब्लॉक से अडानी की कंपनी ओपनकास्ट माइनिंग के जरिये कोयला निकालेगी। 2100 एकड़ में फैला यह कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित हुआ है, लेकिन एमडीओ यानी खदान के विकास और ऑपरेशन का अधिकार अडानी के पास है। संरक्षित व सघन वन क्षेत्र होने के कारण इस कोल ब्लॉक के आवंटन का शुरू से विरोध हो रहा है। पर्यावरण मंत्रालय की इस अनुमति को भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चुनौती देने की तैयारी शुरू हो गई है।
अब केवल वन मंत्रालय की अंतिम मंजूरी बाकी
केंद्री पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की फारेस्ट ऐडवाईजरी कमेटी ने स्टेज वन का फारेस्ट क्लीयरेंस दिनांक 15 जनवरी 2019 को जारी किया था। परसा कोल ब्लॉक के लिए अब केवल वन मंत्रालय की अंतिम मंजूरी मिलनी बाकी है।
राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला के अनुसार मई-जून में केंद्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन समिति (सीबीए) की बैठक में राज्य सरकार ने किसी भी तरह की कोई आपत्ति नहीं की। राज्य सरकार ने यदि आपत्ति की होती तो इस परियोजना को स्वीकृति नहीं मिल पाती।
शुक्ला के अनुसार राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कोल ब्लॉक को लेकर कई तरह की गलत जानकारी दी थी। इस पर हमने सीबीए में तमाम दस्तावेजों के साथ अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। इसमें फर्जी ग्रामसभा कराने की भी शिकायत भी शामिल थी। प्रभावितों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी मिलकर इसकी शिकायत की थी। शुक्ला ने बताया कि कोल ब्लॉक को मिली मंजूरी के खिलाफ एनजीटी में अपील की जाएगी।
क्यों महत्वपूर्ण हैं यह वन क्षेत्र
केंद्र की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने परसा वन क्षेत्र को खनन के लिए नो गो क्षेत्र घोषित किया था। इस पूरे वन क्षेत्र में शेड्यूल- 1 के वन्यप्राणी हैं और हाथी का माईग्रेटरी कोरिडोर हैं। पूरा वन क्षेत्र बांगो बैराज का केचमेंट हैं जिससे जांजगीर जिले में चार लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है।
काटने पड़ेंगे एक लाख पेड़
परसा कोल ब्लॉक के लिए 842 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लगभग एक लाख पेड़ कटेंगे। इस क्षेत्र में न केवल जंगली हाथी और भालू रहते हैं बल्कि और कई तरह के वन्यजीव भी रहते हैं।