ये बात तो आप भी जानते हैं कि जहां चमत्कार है वहां नमस्कार है| झारखंड में सिर्फ देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम ही नहीं बल्कि कई प्राचीन शिवमंदिरों को बाबा धाम के नाम से जाना जाता है। ऐसा ही एक बाबा धाम है पश्चिमी सिंहभूम जिले का महादेवशाल धाम। गोइलकेरा नामक जगह में स्थित महादेवशाल में एक ही शिवलिंग की दो जगहों पर पूजा होती है।
भगवान शिव अन्य देवताओं से बहुत भोले माने गये है। यह अपने भक्तों की थोड़ी सी प्रार्थना से प्रसन्न हो जाते हैं। हिन्दू धर्म में यही एक ऐेसे देवता हैं, जिनकी पूजा एक शिवलिंग के रूप में होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में किसी भी खण्डित मूर्ति की पूजा करना या फिर उसे घर में रखना अच्छा नही माना गया हैं, लेकिन वहीं अगर झारखंड के महादेवशाल धाम की बात की जाए, तो यहां पर एक ऐसा शिवलिंग हैं, जो पूर्ण रूप से खण्डित हैं और साथ ही इस शिवलिंग का बड़ा ही खास महत्व है|यहां खंडित शिवलिंग का मुख्य भाग मंदिर के गर्भगृह में है, जबकि छोटा हिस्सा मंदिर से दो किमी दूर रतनबुरू पहाड़ी पर स्थापित है। यहां स्थानीय आदिवासी पिछले डेढ़ सौ वर्षों से ग्राम देवी और खंडित शिवलिंग की साथ-साथ पूजा करते आ रहे हैं।

शिवलिंग खंडित होने की रोचक कहानी
इस शिवलिंग के खंडित होने की भी एक कहानी है। इस शिवलिंग को खंडित करने का दुस्साहस एक ब्रिटिश इंजीनियर ने किया था जिसके परिणाम स्वरुप उसका मौत हो गई। लोगों के अनुसार ब्रिटिश शासन के समय जब रेलवे लाइन बिछाने का काम चल रहा था, और गोइलकेरा के बड़ैला गांव के नजदीक खुदाई हो रही थी। उसी दौरान खुदाई में एक शिवलिंग निकला जिसको देखकर मजदूरों ने खुदाई रोक दी।

इस काम को कराने वाले वहां मौजूद ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने कहा कि ये सब अंधविश्वास है और उसने फावड़े से शिवलिंग पर मार दिया जिससे शिवलिंग खंडित हो गया। लेकिन आश्चर्य कि बात है कि शाम को घर लौटते समय रास्ते में ही उस ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी इंजीनियर की मौत हो गई। इसके बाद शिवलिंग के छोटे हिस्से को रतनबुरू पहाड़ी पर ग्राम देवी के बगल में स्थापित किया गया। खुदाई में जहां शिवलिंग प्रकट हुआ था, वहां आज महादेवशाल मंदिर है।
बदलना पड़ा फैसला
कहते हैं कि शिवलिंग के प्रकट होने के बाद मजदूरों ग्रामीणों ने वहां रेलवे लाइन के लिए खुदाई कार्य का जोरदार विरोध किया। अंग्रेज अधिकारियों के साथ आस्थावान लोगों की कई बार बैठकें भी हुई। ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी की मौत की गूंज ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्यालय कोलकाता तक पहुंची। आखिरकार ब्रिटिश हुकूमत ने रेलवे लाइन के लिए शिवलिंग से दूर खुदाई कराने का फैसला किया। इसकी वजह से चलते इसकी दिशा बदली गई और दो बड़ी सुरंगों का निर्माण कराना पड़ा

आज भी मौजूद है ब्रिटिश इंजीनियर की कब्रब्रिटिश इंजीनियर की रास्ते में हुई मौत के बाद उसके शव को गोइलकेरा लाया गया। यहां पश्चिमी रेलवे केबिन के पास स्थित साइडिंग में शव को दफनाया गया। इंजीनियर की कब्र यहां आज भी मौजूद है, जो डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी उस घटना की याद दिलाती है।
150 वर्षों से हो रही है पूजा“रतनबुरू में शिवलिंग और ग्राम देवी मां पाउड़ी की पूजा प्रतिदिन होती है। गांव के दिउरी भोलानाथ सांडिल वहां नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। परंपरा के अनुसार पहले शिवलिंग और उसके बाद मां पाउड़ी की पूजा की जाती है। यह सिलसिला ब्रिटिश हुकूमत के समय से चल रहा है।