पत्थलगांवः जंगलों को विकसित कर ही जंगली हाथियों के इस प्रकोप से बचा जा सकता है।
बरसात के दौरान जंगलों के समीप किसानों के खेतों की हरियाली से आकर्षित होकर
जंगली हाथियों की आबादी क्षेत्र में आवाजाही रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के
जशपुर वन मंडल ने यहां तपकरा और फरसाबहार क्षेत्र के जंगलों में लम्बी घांस,
फलदार पौधे और पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराने की खातिर सार्थक पहल शुरू की है।
जशपुर वन मंडल अधिकारी कृष्ण कुमार जाधव ने आज बताया कि वन क्षेत्रों में
पर्याप्त चारा पानी मिलने से हाथी जंगलों के समीप आबादी क्षेत्रों की तरफ नहीं बढ़ेंगे।
श्री जाधव ने बताया कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में जंगली हाथियों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए
भारत सरकार वन मंत्रालय ने नई पहल की है।
इसके तहत हाथियों पर रिसर्च करने वाली 18 सदस्यीय एक्सपर्ट टीम
छत्तीसगढ़ के हाथी प्रभावित इलाकों का निरीक्षण करने पहुंची है।
इस टीम ने सरगुजा संभाग के तमोर पिंगला अभ्यारण्य में हाथी रहवास स्थल में
जल संरचनाओं एवं हाथियों के भोजन हेतु क्षेत्र में उपलब्ध वनस्पतियों का अध्ययन किया।
इस टीम ने तमोर पिंगला अभ्यारण्य के ग्राम अरचोका के ग्रामीणों से
हाथी समस्या के निदान संबंध में विस्तृत चर्चा की।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार वन मंत्रालय की यह पहल से उम्मीद की जा रही है कि
छत्तीसगढ़ में हाथी के बढ़ते प्रभाव को रोकने में यह पहल कारगर साबित होगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में मनुष्य और हाथी को एक साथ सौहाद्रपुर्ण तरीके से रहने लिए उन्हें शिक्षित भी किया जाएगा।
वन विभाग के सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में सबसे पहले
सन् 1982 में पलामु नेशनल पार्क झारखंड के रास्ते हाथियों की इंट्री हुई थी।
इसके बाद लगातार हाथियों की संख्या बढ़ती गई और अब प्रदेश के
विभिन्न क्षेत्रों में 280 से अधिक हाथी धूम रहे हैं।
इस समय 22 हाथियों का झुंड जशपुर, महासमुंद, कोरबा क्षेत्र में सक्रिए है,
30 से भी अधिक हाथी रायगढ़, सरगुजा, धरमजयगढ़ की ओर घूम रहे हैं।