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“400 साल से हो रहे इस्लामिक कार्यक्रमों पर क्यों लगाई रोक?  सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत केंद्र को भेजा नोटिस और याचिकाकर्ता से कहा- हम करेंगे…”

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ग्वालियर में हजरत शेख मुहम्मद गौस की दरगाह पर उर्स और अन्य धार्मिक गतिविधियों के आयोजन को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. यह याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसमें इन कार्यक्रमों के आयोजन की अनुमति से इनकार किया गया था.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 1962 में दरगाह को एक संरक्षित स्मारक घोषित किया था.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बी. वी. नगरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच के सामने यह याचिका रखी गई. कोर्ट ने केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर मामले में उनका जवाब मांगा है. 19 सितंबर को कोर्ट ने याचिका पर अपने आदेश में कहा, ‘विशेष अनुमति याचिका के साथ-साथ अंतरिम अनुरोध पर भी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया जाए.’

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की एक खंड पीठ के आदेश को चुनौती दी है, जिसने अपने सिंगल जज के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के अनुसार, वह हजरत शेख मुहम्मद गौस का कानूनी उत्तराधिकारी है. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि दरगाह में, पिछले 400 सालों से विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए, लेकिन बाद में एएसआई ने दरगाह को एक संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया और इस तरह की गतिविधियों को निषिद्ध कर दिया.

हाईकोर्ट ने कहा कि मार्च 2024 में, याचिकाकर्ता ने एएसआई को एक आवेदन दिया, जिसमें दरगाह में उर्स के आयोजन की अनुमति के लिए अनुरोध किया गया था, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया. हाईकोर्ट को केंद्र के वकील ने बताया था कि मुहम्मद गौस की दरगाह का संरक्षण और देखरेख एएसआई कर रहा है.

हाईकोर्ट ने कहा कि मुहम्मद गौस का मकबरा ग्वालियर में स्थित है और माना जाता है कि यह एक केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक है और 1962 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था. अदालत ने कहा कि परिसर में, संगीतज्ञ तानसेन और मुहम्मद गौस की कब्र हैं.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘असल में यह एएसआई और जिला प्रशासन का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय महत्व के इस स्मारक को अत्यंत सावधानी और सख्ती के साथ बचाए.’ अपील को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने एएसआई के मार्च 2024 के आदेश को चुनौती नहीं दी थी, जिसमें उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया था.