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“माओवादियों का पशुपति से तिरुपति तक का सपना चकनाचूर, गृहमंत्री अमित शाह ने संघर्ष विराम प्रस्ताव किया खारिज, बोले- ‘हम नहीं रुकेंगे'”

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित ‘भारत मंथन 2025: नक्सल मुक्त भारत’ कॉन्क्लेव में संबोधन दिया।

समापन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की कि 31 मार्च, 2026 तक सशस्त्र नक्सलवाद को समाप्त करने की समय सीमा पूरी की जाएगी। उन्होंने CPI(माओवादी) द्वारा हाल ही में हथियार डालने और संघर्ष विराम की मांग करने वाले ‘भ्रामक’ बयान को खारिज कर दिया। यह स्पष्ट करते हुए कि सुरक्षा बलों की ओर से कोई संघर्ष विराम नहीं होगा।

‘आत्मसमर्पण करने वालों को संघर्ष विराम की जरुरत नहीं’ शाह ने कहा कि आत्मसमर्पण करने वालों के लिए संघर्ष विराम की आवश्यकता नहीं है, उन्हें पुनर्वासित किया जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि वामपंथी उग्रवाद (LWE) के खिलाफ लड़ाई तब तक खत्म नहीं होगी जब तक नागरिक समाज के उन तत्वों की पहचान, समझ और उन्हें अलग नहीं किया जाता जो इसे वैचारिक, कानूनी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।

मार्च 2026 का वादा दोहराया गृह मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि मार्च 2026 तक सशस्त्र नक्सलवाद का अंत हो जाएगा। उन्होंने उन व्यक्तियों के लिए सरकार की स्पष्ट नीति बताई जो हथियार डालना चाहते हैं और मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वामपंथी उग्रवाद (LWE) के खिलाफ लड़ाई तब तक पूरी नहीं होगी जब तक नागरिक समाज के उन तत्वों की पहचान नहीं हो जाती, उन्हें समझा नहीं जाता और उनसे संबंध विच्छेद नहीं किया जाता जो इसे वैचारिक, कानूनी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।

वामपंथी दलों पर कटाक्ष शाह ने CPI(माओवादी) के ‘संघर्ष विराम प्रस्ताव’ पर ‘उछलने’ और उसका समर्थन करने के लिए वामपंथी दलों पर कटाक्ष किया। उन्होंने उनसे सवाल किया कि उनकी सहानुभूति, और नागरिक समाज के एक वर्ग तथा मीडिया की सहानुभूति, उन माओवादियों के साथ क्यों है जो निर्दोष आदिवासियों की मनमानी हत्या करते हैं। ये माओवादी ‘रेड कॉरिडोर’ क्षेत्रों में विकास और कल्याणकारी पहलों, बुनियादी ढांचा कार्यों, शिक्षा और शासन को भी बाधित करते हैं। गृह मंत्री ने नागरिक समाज में माओवादी हमदर्दों पर भी कटाक्ष किया, जिन्हें अक्सर ‘अरबन नक्सल’ के रूप में लेबल किया जाता है।

‘देश में कभी 17 प्रतिशत क्षेत्र नक्सलवाद से प्रभावित था’ उन्होंने माओवादी ताकतों के उदय को याद करते हुए कहा कि पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) का प्रभाव कभी कई राज्यों में फैला हुआ था। उन्होंने उल्लेख किया कि पश्चिम बंगाल में वामपंथ के सत्ता में आने के दिन यह किसी तरह समाप्त हो गया, यह संकेत देते हुए कि यह कोई संयोग नहीं था। CPI(माओवादी) के ‘पशुपति से तिरुपति’ तक एक रेड कॉरिडोर बनाने के दृष्टिकोण के बारे में बात करते हुए, उन्होंने बताया कि देश का 17% क्षेत्र कभी नक्सलवाद के प्रभाव में था। इसकी तुलना में पूर्वोत्तर में 3.3% क्षेत्र उग्रवाद से और जम्मू-कश्मीर में 1% क्षेत्र आतंकवाद से प्रभावित था।

गृहमंत्री ने गिनाए आंकड़े गृह मंत्री ने साझा किया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के पिछले दो वर्षों के शासन में, 2,106 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। इसी अवधि में, 1,770 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 560 को बेअसर किया गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मनमोहन सिंह सरकार (2004-2014) के दस साल के शासन और नरेंद्र मोदी सरकार (2014-2024) के दस साल के शासन की तुलना से पता चलता है कि LWE प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की मौतें 73% कम हुई हैं। नागरिकों की मौतें 74% कम हुई हैं।