महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों एक अलग ही सुगबुगाहट चल रही है. इसकी वजह है उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी)… हाल ही में आदित्य ठाकरे की मुंबई के एक फाइव स्टार होटल में सीक्रेट मुलाकात की खबरें सामने आईं. कहा गया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ यह मुलाकात लगभग एक घंटे चली. हालांकि, दोनों नेताओं ने किसी भी मीटिंग से इनकार किया है.
सीएम ऑफिस के अनुसार, मुख्यमंत्री होटल में किसी अन्य कार्यक्रम के लिए आए थे, जबकि आदित्य अपने दोस्तों के साथ डिनर के लिए मौजूद थे. हालांकि अगर हाल की राजनीतिक गतिविधियों पर गौर करें तो यह सिर्फ संयोग नहीं लगता. तीन दिन पहले ही यानी 17 जुलाई को खुद उद्धव ठाकरे और फडणवीस की मुलाकात भी हुई थी. यह मुलाकात विधान परिषद अध्यक्ष राम शिंदे के कक्ष में हुई थी, जहां उद्धव के बेटे और वर्ली विधायक आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे.
मुलाकात पर क्या बोले आदित्य ठाकरे?
लगभग आधे घंटे तक चली इस मुलाकात में उद्धव ने सीएम फडणवीस को एक किताब भेंट की, जिसमें ‘हिंदी की सख्ती क्यों, तीन भाषा जरूरी क्यों’ लिखा था? आदित्य ने बाद में कहा कि यह एक कम्पाइलेशन था, जिसमें कई पत्रकारों और संपादकों ने तीन-भाषा नीति पर अपनी राय दी थी.
सार्वजनिक रूप से तो ये भेंट ‘किताब भेंट’ तक सीमित बताई गई, लेकिन सियासी गलियारों में इसे महज ‘औपचारिक मुलाकात’ मानने को कोई तैयार नहीं. इन मुलाकातों के पीछे कुछ और ही कहानी मानी जा रही है.
16 जुलाई को विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के विदाई समारोह के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस ने मजाकिया लहजे में उद्धव ठाकरे को सत्ता पक्ष में आने का न्योता दिया था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी उनके साथ विपक्ष में शामिल होने की संभावना नहीं रखती, लेकिन वे सत्ता पक्ष में आ सकते हैं. इस बयान के 24 घंटे के अंदर ही उद्धव की फडणवीस से मुलाकात हुई, जो करीब 20 मिनट चली.
उद्धव ठाकरे का MVA से मोहभंग क्यों?
इस सवाल का जवाब शनिवार को ‘सामना’ में छपे उनके इंटरव्यू में मिलता है. उन्होंने स्वीकार किया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान एमवीए में सीट बंटवारे को लेकर गंभीर गलतियां की गईं. ठाकरे ने कहा कि यदि वे इन गलतियों को दोहराना चाहते हैं, तो एक साथ आने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने बताया कि सीट बंटवारे को लेकर रस्साकशी आखिरी दिन तक चलती रही, और इसका गलत संदेश जनता तक पहुंचा. ठाकरे के मुताबिक, लोकसभा चुनावों के दौरान तीनों पार्टियों- शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट)- ने एकजुटता दिखाई थी, लेकिन विधानसभा चुनावों में ‘हम’ की भावना ‘मैं’ में बदल गई.
उद्धव का यह बयान भी संकेत देता है कि MVA को लेकर अब ठाकरे परिवार के भीतर भी असंतोष है. और शायद यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस के साथ बैकचैनल बातचीत की जा रही है.
शिवसेना के पास कितने विधायक?
महाराष्ट्र विधानसभा की सीटों पर नजर डालें तो यहां 288 सदस्यीय सदन में बीजेपी के पास सबसे अधिक 132 विधायक हैं, जबकि शिवसेना (शिंदे गुट) के पास 57, अजित पवार की एनसीपी के पास 41 विधायक है. वहीं विपक्षी एमवीए गठबंधन पर नजर डालें तो इसमें उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के पास 20 विधायक, कांग्रेस के पास 16, जबकि शरद पवार की एनसीपी के पास महज 10 विधायक हैं.
NDA में आते हैं उद्धव तो क्या होगा?
अगर यह खेमा एनडीए में शामिल होता है तो महाराष्ट्र विधानसभा में एनडीए की स्थिति और मजबूत हो जाएगी. उधर माना जा रहा है कि ठाकरे गुट को केंद्र में मंत्रालय या महाराष्ट्र में अहम जिम्मेदारियां मिल सकती हैं, जिससे उनकी वापसी की राह आसान हो सकती है.
2019 में शिवसेना और बीजेपी ने साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा था और दोनों मिलकर लगभग 160+ सीटें जीतकर बहुमत लाए थे. चुनाव नतीजों के बाद उद्धव ने दावा किया था कि बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद 2.5-2.5 साल के लिए शेयर करने का वादा किया था. लेकिन फडणवीस और बीजेपी ने इस दावे को खारिज कर दिया, जिसके बाद शिवसेना ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया और महाविकास आघाड़ी (MVA) के रूप में कांग्रेस और NCP के साथ सरकार बनाई.
हालांकि यह महाविकास आघाड़ी सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई थी और शिवसेना में ही दोफाड़ हो गया. इसके बाद फडणवीस ने एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर सरकार बनाई. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि शिवसेना के दोनों गुटों से बीजेपी सामंजस्य कैसे बैठाएगी?
एकनाथ शिंदे को कैसे करेगी सेट?
अब अगर उद्धव दोबारा बीजेपी के करीब आते हैं, तो शिंदे गुट के साथ सामंजस्य बैठाना चुनौतीपूर्ण होगा. इसकी एक बानगी शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा तक में देखने को मिली, जहां एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को गिरगिट तक कह दिया. उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने और फिर कांग्रेस से हाथ मिलाने की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘महाराष्ट्र ने कभी गिरगिट को इतनी तेजी से रंग बदलते नहीं देखा. वह उन लोगों के साथ चले गए जिन्हें वह कभी नीच समझते थे.’
ऐसे में माना जा रहा है कि एकनाथ शिंदे सत्ताधारी गठबंधन में वैसे तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी को शामिल करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे. हालांकि BJP को इस तरह का राजनीतिक संतुलन साधने का अच्छा अनुभव है. वैसे भी यह पुरानी कहावत है कि कि राजनीति में दरवाज़े कभी पूरी तरह बंद नहीं होते. और शायद यही वजह है कि महाराष्ट्र में अब महाविकास से ज्यादा महासमीकरण की चर्चा तेज हो गई है.