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INDIA अलायंस को एकजुट……संसद सत्र से पहले हुई बैठक में सीट बंटवारे और रणनीति पर बात तो हुई

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संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही विपक्षी INDIA अलायंस ने सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा की, लेकिन रणनीति कम और रस्साकशी ज्‍यादा दिखी. हर दल की अलग लाइन, हर नेता की अलग सोच. उद्धव ठाकरे ने तो साफ साफ गठबंधन की चुनावी नाकामी पर सवाल उठा दिए. कह द‍िया ‘एक बार फिर वही गलती हुई तो साथ आने का कोई फायदा नहीं’. ममता, अखिलेश और तेजस्वी कांग्रेस को घेरते रहे हैं. वजह साफ है बीजेपी भले प्रतिद्वंद्वी हो, असली ‘खतरा’ कांग्रेस बन रही है. उधर, राहुल गांधी भी पीछे नहीं रहे. केरल की धरती से उन्‍होंने कह द‍िया, वाम दल आरएसएस जैसे हैं. वही वाम दल जो INDIA अलायंस में पार्टनर है. यही वजह है कि INDIA अलायंस को साथ रखना अब ‘तराजू में मेंढक तौलने’ जैसा बन गया है.
INDIA अलायंस में शामिल हर पार्टी जानती है क‍ि बीजेपी एक कॉमन दुश्मन है, लेकिन वे कांग्रेस को भी अपने-अपने राज्यों में सबसे बड़ा खतरा मानते हैं. ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस को जगह नहीं देना चाहतीं. अखिलेश यादव को यूपी में कांग्रेस के वोट शेयर का असर अखरता है. तेजस्वी यादव को लगता है कि अगर कांग्रेस ने बिहार में ज्यादा दखल दिया, तो आरजेडी की पकड़ ढीली पड़ेगी. उधर, कांग्रेस की स्थिति भी सामूहिक नेतृत्व वाली नहीं दिखती. वह एक ओर गठबंधन को साधने की कोशिश कर रही है, लेकिन जैसे ही एक राज्य में किसी दल के साथ डील करती है, दूसरे राज्य में नया झगड़ा खड़ा हो जाता है. इसीलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस जहां समेटने जाती है, वहां से नया रायता फैल जाता है.
क्‍यों हो रही परेशानी
इस पूरे भ्रम और असमंजस का सीधा लाभ बीजेपी को मिलता है. वह विपक्ष में मार-काट को भुनाने में जुटी है. बीजेपी को पता है कि INDIA अलायंस का हर नेता कांग्रेस से डरता है क्योंकि कांग्रेस अगर राष्ट्रीय स्तर पर फिर से मजबूत हो गई, तो क्षेत्रीय दलों का स्पेस खत्म हो जाएगा. यही वजह है कि INDIA अलायंस को एकसाथ लेकर चलना ‘तराजू में मेंढक तौलने’ जैसा बन गया है. कोई एक तरफ कूदता है, तो दूसरा दूसरे पलड़े से उतर जाता है. ऊपर से कांग्रेस की दुविधा क‍ि वह लीडरश‍िप को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती. कोई नया नेता नहीं देना चाहती, जो इंडिया अलायंस को परेशान करता है.
महाराष्‍ट्र
उद्धव ठाकरे ने INDIA अलायंस की रणनीति पर सीधा सवाल खड़ा किया. उन्होंने कहा, जब लोकसभा चुनाव हुए, तब हमारे पास साझा चुनाव च‍िह्न नहीं था, पर कैंड‍िडेट तय किए गए. विधानसभा चुनाव में चिन्ह तय था, पर सीटों और उम्मीदवारों पर कोई स्पष्टता नहीं थी. यह गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए, वरना साथ आने का मतलब ही नहीं. इस बयान के बाद यह साफ हो गया कि अंदरखाने जो नाराजगी पल रही थी, वह अब मंच पर आ चुकी है.
पश्च‍िम बंगाल
बंगाल में ममता बनर्जी को डर है कि अगर कांग्रेस को छूट दी गई तो मुस्लिम वोटों में बंटवारा होगा और बीजेपी को लाभ मिलेगा.
उत्‍तर प्रदेश
यूपी में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन सीमित सीटों पर. कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव से समाजवादी पार्टी को खतरा महसूस होता है. क्‍योंक‍ि दोनों का वोट बैंक लगभग एक है.
बिहार
बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी ने शुरू से ही कांग्रेस को जूनियर पार्टनर की भूमिका में रखा है, लेकिन अब कांग्रेस यहां भी दखल बढ़ाना चाह रही है. यह तेजस्‍वी को परेशान करता है.
कांग्रेस की असहज स्थिति
कांग्रेस खुद भी इस स्थिति से संतुलन नहीं बना पा रही. अगर वह किसी राज्य में गठबंधन के लिए झुकती है, तो दूसरे राज्य में उसी का खामियाजा भुगतना पड़ता है. ममता बनर्जी जैसी नेता कई बार यह इशारा कर चुकी हैं कि उन्हें कांग्रेस पर भरोसा नहीं है.

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