छत्तीसगढ़ : 11 साल पहले हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमले झीरम हत्याकांड का सच…
छत्तीसगढ़ में 11 साल पहले हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमले झीरम हत्याकांड का सच अब तक बाहर नहीं आया है. राजनीति की भेंट चढ़ी झीरम हत्याकांड कांग्रेस-भाजपा, एनआईए और कोर्ट के बीच अधूरी रह गई है.
25 मई 2013 यानी 11 साल पहले हुए छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी हत्याकांड हुई थी. इसमें दिग्गज कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार समेत 30 नेताओं और कार्यकर्ताओं की सरेराह हत्या कर दी गई थी.
इस बहुचर्चित हत्याकांड की जांच भाजपा सरकार के 5 और फिर कांग्रेस सरकार के 5 साल के कार्यकाल के बाद भी अधूरी रह गई है. हत्याकांड की आपराधिक जांच और सुरक्षा में चूक के लिए अलग-अलग जांच की गई.
इसके बाद भी इस नरसंहार के रहस्यों से अब तक पर्दा नहीं उठ सका है. झीरम में छत्तीसगढ़ के प्रमुख कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल, वीसी शुक्ल, महेंद्र कर्मा समेत 30 कांग्रेसी मारे गए थे. हत्याकांड की जांच की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने 2 दिन बाद ही 27 मई 2023 को एनआईए को सौंप दी थी.
एनआईए ने 24 सितंबर 2014 को विशेष अदालत में पहली चार्जशीट दाखिल की. इसमें 9 गिरफ्तार नक्सलियों समेत 39 को इस हत्याकांड का आरोपी बताया गया. इसके बाद 28 सितंबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की गई जिसमें 88 और आरोपियों को शामिल किया गया. मामले में जैसे ही चार्जशीट कोर्ट में जमा की, अधूरी जांच, राजनीतिक दबाव, नक्सली लीडर्स को बचाने जैसे आरोप लगे.
झीरम घाटी हत्याकांड की जांच के लिए हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया था, जिसमें सुरक्षा में चूक की जांच चल रही थी. लंबी सुनवाई के बाद जस्टिस मिश्रा का प्रमोशन हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में हुआ. इस दौरान उन्होंने जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश की.
इस रिपोर्ट को कांग्रेस की सरकार ने अधूरा बताया और रिपोर्ट को सार्वजनिक किए बगैर ही जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और रिटायर्ड जज मिन्हाजुद्दीन की 2 सदस्यीय जांच कमेटी बना दी. इसके खिलाफ भाजपा नेता धरमलाल कौशिक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर अब तक स्थगन मिला हुआ है.