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छत्तीसगढ़ : करीब 327 प्रकार की वन औषधि विलुप्त होने की कगार पर, कई औषधालय बंद…

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छत्तीसगढ़ : बस्तर को सालवानों का द्वीप कहा जाता है. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण बस्तर चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है. इन वनों से मिलने वाले वनोषधालय आदिवासियों के लिए रामबाण साबित होते हैं, लेकिन वन विभाग (Forest Department) की उदासीनता के चलते बस्तर (Bastar) में मिलने वाले करीब 327 प्रकार की वन औषधि विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है.

आलम यह है कि बस्तर के कई वन औषधालय पूरी तरह से बंद हो गए हैं, और विभाग इनको दोबारा शुरू करने के लिए कोई रुचि नहीं ले रहा है.

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में ग्रामीण क्षेत्र में आज भी वैधराज द्वारा जड़ी बूटियां के माध्यम से कई जटिल Cबीमारियों का उपचार किया जाता है. आदिवासियों के स्वस्थ रहने का राज भी बस्तर से मिलने वाली वन संपदा है जिसमें करीब 60 प्रतिशत वन औषधि हैं जो आदिवासी अपने रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करते हैं, गंभीर बीमारियों से लेकर छोटी-मोटी बीमारियों में भी बस्तर के ग्रामीण वन औषधि का ही उपयोग करते हैं.

कुछ साल पहले खोले गए थे वन औषधालय
कुछ साल पहले बस्तर में मिलने वाली वन औषधि को बचाने और वैधराज के द्वारा इन जड़ी बूटियों के माध्यम से इलाज के लिए शासन द्वारा वन-औषधालय खोले गए और वैधों को शासन की ओर से 5 हजार हर महीने मानदेय भी दिए जाने लगा, लेकिन अब आलम यह है कि ऐसे वन औषधालय या पूरी तरह से वन विभाग की उदासीनता के चलते बंद हो गए है या दोबारा शुरू करने के लिए विभाग कोई रुचि नहीं ले रहा है.

327 प्रकार की जीवन रक्षक औषधि उपलब्ध
जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर के जंगल में करीब 327 प्रकार की जीवन रक्षक वन औषधि पाई जाती है, इसमें सर्पगंधा, हिरण,तुतिया, कलिहारी कन्द, रसना जड़ी,मेदा छाली, महामेदा, तीखुर भी शामिल है. वन विभाग के मार्फ़त सरकार वन औषधियों को बचाने का प्रयास करने की बात कह रही है लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से असफल होता नजर आ रहा है. करीब 15 साल पहले खुले बाजार में वन औषधि की जमकर खरीदारी हुई थी, तब ग्रामीणों ने भी पैसे के लालच में बिना सोचे समझे जंगल से वन औषधी का दोहन किया जो आज चिंता का विषय बनता जा रहा है.

बस्तर में जड़ी बूटी से उपचार करवाते हैं ग्रामीण
इधर वनोषधालय के जानकार बुधसन और मधुसूदन ने बताया कि बस्तर के जंगल में पाई जाने वाली वन औषधि को विकसित करने की जरूरत है, क्योंकि आज भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग अधिकांश बीमारी का उपचार जड़ी बूटियों के माध्यम से ही करते हैं. उनका कहना है कि गलत नीति और हाईटेक प्लांटेशन के कारण वन औषधि गायब हो रहे हैं.