मॉब लिंचिंग की घटनाओं में शामिल लोगों पर भी हत्या के मुकदमे की तरह ही धाराएं लग सकती हैं और सजा-ए-मौत एवं उम्रकैद की सजा मिल सकती है। इस संबंध में संसदीय समिति विचार कर रही है।
इस समिति की ओर से तीन आपराधिक कानून में बदलाव की सिफारिश हो सकती है।
जाति एवं संप्रदाय के आधार पर मॉब लिंचिंग करने वाले लोगों को कड़ी सजा दिलाने की मांग उठती रही है। अब तक मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल तक की सजा का प्रावधान रहा है, जिसे अब बदलकर फांसी और उम्रकैद तक करने का प्रावधान रखा जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता पर विचार करने के लिए गृह मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया है।
इस समिति में जाति, नस्ल, संप्रदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा और मान्यता के नाम पर मॉब लिंचिंग के मामले में कड़ी सजा पर विचार चल रहा है। समिति इस बात की सिफारिश करने पर विचार कर रही है कि ऐसी कोई भी मॉब लिंचिंग हो तो उसमें शामिल लोगों पर हत्या का ही केस चले। इसके अलावा उन्हें हत्या के मामलों में मिलने वाली उम्रकैद और फांसी जैसी सजाओं का ही प्रावधान हो। स्टैंडिंग कमेटी में इस पर गंभीरता से विचार हो रहा है।
इसके अलावा एक सिफारिश यह भी हो सकती है कि धारा 377 को बरकरार रखा जाए।
पहले इसके तहत समलैंगिक और अप्राकृतिक संबंधों पर रोक थी। लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खत्म कर दिया गया था। अब पैनल का मानना है कि अप्राकृतिक संबंधों के आरोपों को इसी सेक्शन के तहत रखा जाए। ऐसे लोगों पर इस सेक्शन के तहत ही केस चलाए जाएं। इसके अलावा अवैध संबंधों के लिए धारा 497 के तहत केस चलेगा। हालांकि इसे जेंडर न्यूट्रल रखने की सिफारिश हो सकती है।