संसद में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का आज आख़िरी दिन है.
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर अपना जवाब देंगे. इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस यानी इंडिया ने केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मणिपुर में जारी नस्ली हिंसा पर अविश्वास प्रस्ताव लाया था और इस पर मंगलवार से चर्चा जारी है.
आज प्रधानमंत्री मोदी के जवाब के साथ ही चर्चा ख़त्म हो जाएगी.
पिछले दो दिनों में अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में तीखी बहस हुई है. विपक्ष ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया वह मणिपुर को बाँट रही है. दूसरी तरफ़ सरकार ने मणिपुर में जारी हिंसा में अपने रुख़ का बचाव किया है. राहुल गांधी ने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर नहीं जाने पर सवाल उठाया.
मंगलवार की शाम राहुल गांधी के आरोपों का जवाब गृह मंत्री अमित शाह ने दिया. अमित शाह ने मोदी सरकार का एक तरह से रिपोर्ट कार्ड पेश किया. अमित शाह ने कहा कि उनकी सरकार प्रदेश में हिंसा ख़त्म करने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठा रही है. गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी पर पूरे देश को विश्वास है, भले विपक्ष को अविश्वास है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार को लोकसभा में मौजूद रहेंगे और अविश्वास प्रस्ताव पर अपना जवाब देंगे. विपक्ष मॉनसून सत्र की शुरुआत से मणिपुर पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहा था.
बीजेपी के पास बहुमत
लोकसभा में एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा के पास 331 सांसद हैं. केवल बीजेपी के ही लोकसभा में 303 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सांसद होने चाहिए.
विपक्षी गठबंधन इंडिया के पास कुल 144 सांसद हैं और अगर बीआरएस के नौ सांसद साथ आ जाते हैं तो यह संख्या 152 पहुँच जाएगी. इन दोनों खेमों के अलावा वाईएस जगनमोहन रेड्डी की वाइएसआरसीपी और नवीन पटनायक के बीजू जनता दल को मिला दें तो 70 सांसद होते हैं. बीजू जनता दल संसद में अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर रहा है.
विपक्ष मणिपुर में जारी हिंसा पर बहस की मांग कर रहा था लेकिन बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के बयान को लेकर सहमत नहीं थी. ऐसे में विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव की राह चुनी.
अविश्वास प्रस्ताव की रणनीति
संसदीय लोकतंत्र में कोई सरकार तभी सत्ता में रह सकती है, जब उसके पास सीधे निर्वाचित सदन यानी लोकसभा में बहुमत हो.
संविधान के अनुच्छेद 75(3) के मुताबिक़ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति ज़िम्मेदार होता है. इस सामूहिक ज़िम्मेदारी को परखने के लिए लोकसभा में एक अलग नियम है, जिसे अविश्वास प्रस्ताव कहा जाता है. अविश्वास प्रस्ताव ये परखता है कि क्या सरकार के पास समर्थन है.
कोई भी लोकसभा सांसद जो 50 सांसदों का समर्थन हासिल कर सकता है, किसी भी समय सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है.
इसके बाद अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होती है. जो सांसद इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं वो सरकार की कमियों को उजागर करते हैं.
सरकार भी इन आरोपों पर अपना पक्ष सामने रखती है. इसके बाद प्रस्ताव पर वोटिंग की जाती है. अगर सरकार के खिलाफ़ बहुमत में वोट पड़ते हैं तो सरकार गिर जाती है.
आँकड़ों में अव्वल
लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सांसदों की ज़रूरत है. एनडीए के पास 331 सांसद हैं. अकेले बीजेपी के पास 303 सांसद हैं. इसका मतलब यह है कि भले ही सभी ग़ैर-एनडीए दल एक साथ आ जाएं फिर भी बीजेपी के पास अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए पर्याप्त संख्या है.
26 पार्टियों के गठबंधन इंडिया के पास लोकसभा में 144 सांसद हैं, वहीं वो पार्टियां जो इंडिया या एनडीए दोनों का हिस्सा नहीं हैं जैसे बीजेडी, बीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस उनके पास 70 सासंद हैं.
अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल तब भी किया जाता है, जब विपक्ष सरकार से किसी ऐसे मुद्दे पर चर्चा चाहता है जिस पर बात करने से सरकार बचती है.
इस बार कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को ये पता है कि वो संख्या के आधार पर इस प्रस्ताव को कभी पास नहीं करा पाएंगी लेकिन फिर भी ये प्रस्ताव इसलिए लाया गया है ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर के हालात पर सदन में विस्तृत बयान दें.
1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के ख़िलाफ़ आचार्य जेबी कृपलानी ने पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया था. प्रस्ताव पर चार दिनों तक 21 घंटे तक बहस चली, जिसमें 40 सांसदों ने भाग लिया.
अपने बयान में लोकसभा में नेहरू ने कहा था, “अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार में बैठी पार्टी को हटाकर उसकी जगह लेना होता है और ये होना भी चाहिए. वर्तमान उदाहरण से यह स्पष्ट है कि ऐसी कोई अपेक्षा या आशा अविश्वास प्रस्ताव से नहीं थी. हालांकि बहस कई मायनों में दिलचस्प थी और मुझे लगता है कि चर्चा लाभदायक भी थी. मैं इस प्रस्ताव और इस बहस का स्वागत करता हूं. मैंने महसूस किया है कि यदि हम समय-समय पर इस प्रकार के प्रीऑडिकल टेस्ट करते रहें तो यह अच्छी बात होगी. “
तब से संसद में 27 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं.
साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, जिसके चलते उनकी सरकार गिर गई थी. एआईएडीएमके से एनडीए गठबंधन छोड़ दिया था, जिसके बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.
इस प्रस्ताव की वोटिंग में सत्तारूढ़ एनडीए को 269 वोट मिले, जबकि विपक्ष को 270 वोट मिले थे.