भारत की राजधानी दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा से बीते दिनों हिंसा की कई तस्वीरें सामने आईं.
हिंसा का केंद्र रहे नूंह और गुरुग्राम में अभी हालात सामान्य हैं लेकिन यहां का घटनाक्रम अभी भी चर्चा के केंद्र में हैं.
असल में हरियाणा से शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा की लहर का सिलसिला बीते सोमवार को शुरू हुआ था.
सोमवार को नूंह ज़िले के मेवात क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद ने धार्मिक रैली का आयोजन किया था.
ये रैली दोपहर क़रीब दो बजे निकलनी थी. रैली से पहले वीएचपी और बजरंग दल से जुड़े कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर कथित तौर पर भड़काऊ बातें कहते हुए वीडियो शेयर किए.
इस धार्मिक यात्रा में नासिर और जुनैद की हत्या के मुख्य अभियुक्त मोनू मानेसर के शामिल होने की भी ख़बर थी.
परिणामस्वरूप मुस्लिम बहुल नूंह ज़िले के स्थानीय लोगों में गुस्सा था.
नूंह में मुसलमानों की आबादी 79 फ़ीसदी से ज़्यादा है.
कैसे भड़की हिंसा?
सोमवार को रैली जैसे ही शुरू हुई उसके कुछ देर बाद ही दो गुटों में टकराव हो गया.
बेकाबू भीड़ ने लोगों की गाड़ियों में आग लगा दी. कम से कम 120 गाड़ियों को नुकसान पहुंचा. कई दुकान लूट लिए गए.
पांच की मौत हो गई, 23 लोग घायल हुए, जिनमें 10 पुलिसकर्मी थे.
नतीजतन सोमवार को ही देर रात गुरुग्राम के सेक्टर 57 स्थित मस्जिद में कुछ उपद्रवियों द्वारा आग लगा दी गई.
इस हमले में मस्जिद के नायब इमाम की मौत हो गई. नायब इमाम की उम्र महज़ 22 साल थी.
हिंसा की छिटपुट घटनाएं अगले दो दिनों तक हरियाणा और दिल्ली से सटे गुरुग्राम के अलग-अलग जगहों से आती रहीं.
सोची-समझी साज़िश का हिस्सा
हरियाणा के गृहमंत्री ने हिंसा की इन घटनाओं को सोची-समझी साज़िश का हिस्सा बताया है.
वहीं, नूंह से कांग्रेस विधायक चौधरी आफ़ताब अहमद ने इसके लिए प्रशासनिक नाकामी को ज़िम्मेदार ठहराया है.
ग़ौरतलब है कि सांप्रदायिक हिंसा की ये घटनाएं देश की राजधानी दिल्ली के आसपास के इलाकों में हुई हैं, जहां अगले महीने जी-20 की शिखर वार्ता होनी है और इस वार्ता में दुनिया भर के शीर्ष नेता हिस्सा लेने वाले हैं.
यहां तक कि गुरुग्राम में भी जी-20 की एक बैठक होनी है.
ऐसे में राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तो सवाल उठ ही रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी नूंह और गुरुग्राम की सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी ख़बरों को प्रमुखता से जगह दे रहा है.
क्या कह रहा है अंतरराष्ट्रीय मीडिया?
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने बीते दिनों भारत में एक के बाद एक हुई सांप्रदायिक हिंसा पर पहली अगस्त को एक लेख प्रकाशित किया है.
लेख का शीर्षक है “हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा शासित भारत में तेज़ी से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा.”
लेख में मणिपुर हिंसा से लेकर हरियाणा के नूंह और गुरुग्राम की हिंसा का भी ज़िक्र है.
साथ ही अख़बार लिखता है कि “प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले भारत से हिंसा की ऐसी तस्वीरें सामने आना शायद कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन ये ख़बरें ऐसे समय में आ रही हैं जब सितंबर में वहां जी-20 शिखर सम्मेलन की बैठक होनी है और भारत इसकी मेज़बानी कर रहा है.”
अख़बार ने आगे लिखा है, “इस बीच प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में ‘अर्थव्यवस्था-केंद्रित भारत की विकास गाथा’ का प्रचार कर रहे हैं और उन्हें पेरिस और वाशिंगटन में उनके नेतृत्व के लिए प्रशंसा भी मिली है.”
“भारत के ज़्यादातर हिस्सों में लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक जीवन में पहली बार कदम रखने के बाद से ही देश के हिंदू-राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़े हुए हैं.”
अख़बार ने जयपुर से मुंबई जा रही ट्रेन में गोलीबारी के मामले को भी उठाया है.
अख़बार लिखता है कि “जहां प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर आरपीएफ़ जवान ने मुस्लिम यात्रियों की हत्या की, उसी राज्य में मौजूद होते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की.”
‘संघ की रणनीति’
पाकिस्तान से छपने वाले अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने हरियाणा की नूंह हिंसा पर एक संपादकीय प्रकाशित की है.
अपने संपादकीय में अख़बार लिखता है कि “भारत अगले साल होने जा रहे आम चुनाव की तैयारी कर रहा है. ऐसे में कोई भी उम्मीद कर सकता है कि चुनावों में बीजेपी को बढ़ावा देने के लिए संघ परिवार संदिग्ध तरीके अपनाएगा.”
“इन मामलों में संघ की सबसे सफल रणनीतियों में से एक है सांप्रदायिक हिंसा को हवा देना और बीजेपी के कट्टरपंथी मतदाताओं को आश्वस्त करना कि वह अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुसलमानों पर ‘सख़्त’ बनी हुई है.”
“बीजेपी शासित हरियाणा में हाल में हुई हिंसक झड़पें इसी आजमाए जा चुके तौर-तरीके का हिस्सा है.”
आगे नूंह और गुरुग्राम की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए अख़बार ने लिखा है कि “भारत के विपक्षी नेताओं ने इस बात को रेखांकित किया है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, बीजेपी वोट हासिल करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा, नफ़रती भाषण और अल्पसंख्यकों को प्रलोभन देगी.”
“निश्चित रूप से, पिछले कुछ महीनों में पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात से आईं सांप्रदायिक हिंसा की ख़बरें ये साबित करती हैं कि ये आशंकाएं निराधार नहीं है.”
नफ़रत और हाशिए की राजनीति
‘डॉन’ ने मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए लिखा है, “बीजेपी शासित राज्य मणिपुर की सांप्रदायिक स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है.”
“भारत की केंद्र सरकार को इन परेशान करने वाली प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने और संघ परिवार पर लगाम लगाने की जरूरत है क्योंकि देश के अल्पसंख्यकों पर क्रूरता के बाद जीते गए चुनावों की वैधता बहुत कम होगी.”
“इसके अलावा, विपक्ष, विशेष रूप से नवगठित ‘इंडिया’ गठबंधन को देश के अल्पसंख्यकों को आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि वह उनके साथ खड़ा है, और नफ़रत और हाशिए की राजनीति को ख़ारिज करता है.”
समाचार एजेंसी रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस (एपी) ने हरियाणा के नूंह से वहां के ज़मीनी हालात के रिपोर्टें प्रकाशित की हैं.
रॉयटर्स लिखता है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार को लेकर अब भारत के 20 करोड़ मुसलमानों में से कई लोगों ने समाज में अपनी जगह के बारे में पूछना शुरू कर दिया है. गोमांस ले जाने के संदेह में पीट-पीट कर मार डालने की घटनाओं ने मुसलमानों के अंदर डर बढ़ा दिया है.”
“भारत की राजधानी दिल्ली में अगले महीने आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक एक महीने पहले दिल्ली के बाहरी इलाकों में अशांति फैली है.”
वहीं समाचार एजेंसी एपी ने लिखा है, “नूंह हिंसा में 20 पुलिस अफसर घायल हुए हैं और दर्जनों गाड़ियों का आग के हवाले कर दिया गया.”
एजेंसी के मुताबिक़, “भारत में सांप्रदायिक हिंसा कोई नई बात नहीं है, 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के ब्रिटिश विभाजन के बाद से समय-समय पर झड़पें होती रही हैं, लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार के तहत धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ गया है, जिससे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.”
हरियाणा हिंसा
तुर्की के सरकारी मीडिया टीआरटी वर्ल्ड ने दो अगस्त को हरियाणा हिंसा पर एक विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित की है.
अपनी रिपोर्ट में नूंह से ताल्लुक रखने वाले एक वरिष्ठ अधिवक्ता और एक्टिविस्ट रमज़ान चौधरी के हवाले से वेबसाइट लिखता है, “नूंह और उसके आसपास के गांव के कम से कम 2000 मुस्लिमों ने घर खाली कर दिए हैं. ये आंकड़े और अधिक हो सकते हैं और तक़रीबन सभी गांव खाली हो गए हैं.”
टीआरटी वर्ल्ड से बात करते हुए नूंह, गुरुग्राम और पलवल के कई लोगों ने ये आरोप लगाया कि पुलिस मुस्लिम पुरुषों को उनके घरों से मनमाने ढंग से गिरफ़्तार कर रही है.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के हवाले से टीआरटी वर्ल्ड ने लिखा है कि नूंह में पुलिस ने कम से कम 116 लोगों को हिरासत में लिया है.
“नूंह के स्थानीय हिंदू और मुस्लिम लोगों का कहना है कि वीएचपी और बजरंग दल कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में जुलूस से पहले मुसलमानों को टारगेट करने वाले उत्तेजक वीडियो और मीडिया कंटेंट व्हाट्सएप, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रसारित की गई थीं.”
“स्थानीय लोग बताते हैं कि जुलूस के दौरान भी मुसलमानों के विरुद्ध भड़काऊ नारे लगाए जा रहे थे.”
क़तर की समाचार वेबसाइट ‘अल जज़ीरा’ में गुड़गांव में मस्जिद जलाए जाने, नूंह हिंसा और बीते दिनों देश में भड़की सांप्रदायिक घटनाओं पर एक लेख छपा है.
लेख का शीर्षक है “क्या भारत की आने वाली पीढ़ियां इस मुस्लिम-विरोधी नफ़रत से जुड़ी अपनी कमज़ोरियों को माफ़ कर पाएगी?”
लेखिका और दिल्ली में क़ानून की प्रोफ़ेसर समीना दलवई लिखती हैं, “नब्बे साल पहले, 10 मई, 1933 को नाज़ी छात्र संघ के 5000 छात्र और उनके प्रोफेसर जलती मशालों के साथ बर्लिन के बेबेलप्लात्ज़ में एकत्र हुए थे. उन्होंने मुख्य रूप से यहूदी लेखकों और कार्ल मार्क्स, रोजा लक्जमबर्ग जैसे कम्युनिस्ट विचारकों द्वारा लिखी गई लगभग 20,000 किताबों को आगे के हवाले कर दिया था. इस दृश्य को 40 हजार लोगों ने देखा था.”
समीना दलवई ने आगे लिखा है, “इस साल, अप्रैल में बिहार के बिहारशरीफ शहर की एक घटना ने मुझे 90 साल पुरानी इस घटना की याद दिला दी. बिहारशरीफ शहर में 4,500 इस्लामी ग्रंथों, किताबों वाली एक मदरसे की लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया था.”
लेख में आगे जर्मनी, होलोकास्ट, यहूदियों के ख़िलाफ़ हिंसा की तुलना भारत और यहां के मौजूदा हालातों से की गई है.
वो लिखती हैं, “हरियाणा की सांप्रदायिक हिंसा और लिंचिंग की घटनाएं भारतीय मुसलमानों को और ज़्यादा घेटो में रहने को मजबूर करेगी. आम मुसलमान – युवाओं, बच्चों, महिलाओं, पुरुषों और पेशेवरों – की आवाज़ें खो गई हैं.”