Home News राष्ट्रपति का बस्तर दौरा: आखिर क्यों निकाले जा रहे राजनीतिक मायने?

राष्ट्रपति का बस्तर दौरा: आखिर क्यों निकाले जा रहे राजनीतिक मायने?

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देश के नक्सल प्रभावित राज्यों की पहली सूची की पहली पंक्ति में खड़े छत्तीसगढ़ के बस्तर में पहली बार कोई राष्ट्रपति रात गुजारेंगे. सरकार और प्रशासन राष्ट्रपति के दौरे से बस्तर की दुनिया में एक नयी छवि दिखाने की कोशिश मान रही है. जबकि दूसरे दल के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बस्तर दौरे के अपने ही राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 25 और 26 जुलाई को बस्तर प्रवास पर रहेंगे.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बस्तर प्रवास को लेकर तैयारियां लगभग पूरी कर ली गई हैं. बता दें कि प्रवास के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होंगे. इसके बाद इसी दिन शाम को बस्तर के जगदलपुर स्थित चित्रकोट में रात गुजारेंगे. फिर दूसरे दिन जगदलपुर में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल होंगे. चुनावी साल में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आदिवासी बाहुल्य बस्तर में प्रवास को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर है.

छत्तीसगढ़ में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बस्तर आगमन को काफी अहम मान रही है. भाजपा के जगदलपुर विधायक और पर्यटन मंडल के अध्यक्ष संतोष बाफना राष्ट्रपति के दौरे को एक उपलब्धि बता रहे हैं. संतोष का कहना है कि राष्ट्रपति के दौरे से विश्व पटल पर बस्तर की एक खुबसूरत तस्वीर बनने वाली है. देश दुनिया को पता चलेगा कि बस्तर में अब नक्सल संगठन दम तोड़ रहे हैं और विकास हो रहा है. बस्तर की प्राकृतिक सौंदर्यता लोगों को आकर्षित करेगी. राष्ट्रपति के दौरे का राजनीतिक मायने लगाना गलत है.
बस्तर में कांग्रेस नेता नेता दीपक बैज का कहना है कि बस्तर में भाजपा सरकार काफी ज्यादा डरी हुई है. सरकार ने यहां विकास के सपने दिखाए, लेकिन विकास किया नहीं. आदिवासियों का शोषण किया गया, उन्हें उनके ही अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. इसलिए चुनावी साल में राष्ट्रपति का दौरा कराकर सरकार राजनीतिक लाभ लेना चा​हती है.

दरअसल इस साल के अंत में ही छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश में सत्ता की चाबी माने जाने वाले बस्तर में पिछले चुनाव में भाजपा कमजोर नजर आई. बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में से सिर्फ चार पर ही भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली. आठ सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. इसके अलावा बीते कुछ महीनों में आदिवासी अलग अलग मंचों से सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए सरकार के खिलाफ नाराजगी जता चुके हैं. जानकारों की मानें तो यही कारण है कि विरोधी नेता राष्ट्रपति के दौरे को राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं.

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