छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ दुनिया के सबसे रहस्यमय स्थानों में से एक है. करीब 4400 वर्ग किलोमीटर में फैले अबूझमाड़ के जंगलों, पहाड़ों, गहरी घाटियों के बीच गुमनाम 237 गांवों का भू-सर्वेक्षण कभी नहीं हो पाया. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने जतन किए, लेकिन पास नहीं हो सके. हजारों वर्ष से कोई हुकूमत यहां प्रवेश नहीं कर सकी.
मुगलकाल में अकबर ने यहां भूमि का सर्वे कराने की प्रयास की, लेकिन नाकामयाब रहे. साल 1909 में ब्रिटिश हुकूमत ने भी ऐसा ही कोशिश किया, मगर उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली. अब जाकर छत्तीसगढ़ गवर्नमेंट को आंशिक कामयाबी मिलीहै. संभावित 237 गांवों में से 10 का हवाई सर्वे किया जा सका है. इसके आधार पर इसी 13 मई को विकास यात्रा लेकर नारायणपुर जिला पहुंचे CM डॉ । रमन सिंह ने पांच गांवों के 169 परिवारों को भूमि के दस्तावेज सौंपे .
दरअसल, अबूझमाड़ नक्सलियों के कब्जे में है . वे राजस्व सर्वे का हिंसक विरोध कर रहे हैं . छत्तीसगढ़ गवर्नमेंट ने 11 मई 2007 में नारायणपुर को जिला बनाया . इसके बाद राजनांदगांव जिले से राजस्व निरीक्षकों की टीम अबूझमाड़ का सर्वे करने के लिए भेजी गई, लेकिन यह टीम भय कर लौट आई . सन 2009 में गवर्नमेंट ने अबूझमाड़ के सर्वे के लिए 22 राजस्व निरीक्षकों की भर्ती की, लेकिन एक ने भी जॉब ज्वाइन नहीं की . अंतत: अक्टूबर 2016 में गवर्नमेंट ने आइआइटी रुड़की की मदद से भौगोलिक सूचना प्रणाली व दूरसंवेदी उपग्रह के जरिये यहां का सर्वे कराया . हालांकि भौतिक सत्यापन के लिए सर्वे टीम का गांव तक पहुंचना महत्वपूर्ण था, जो आज भी नहीं हो पाया है .
कामयाब हुई कोया कमांडो की तैनाती
बस्तर में नक्सलियों को पीछे खदेड़ने में कोया कमांडो बड़ी किरदार निभा रहे हैं . डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के रूप में बस्तर में तैनात इस दस्ते के एक हजार जवानों ने मिजोरम में गुरिल्ला युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लेने के बाद नक्सल मोर्चे पर कमान संभाली है . 2011 में समर्पित नक्सल लड़ाकोंको राज्य गवर्नमेंट ने एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के रूप में नियुक्ति दी थी .
बाद में मानवाधिकार संगठनों की याचिका पर न्यायालय ने इनकी नियुक्ति को अवैधानिक ठहरा दिया था . ऐसी स्थिति में राज्य गवर्नमेंट ने कानून बनाकर सहायक आरक्षक का पद सृजित किया . इसके बाद बने इस बल में लोकल आदिवासी युवकों और आत्म समर्पित नक्सलियों को रखा गया . ये जवान लोकल बोली-भाषा व जंगल की विषमता, इतिहास और भूगोल से भली भांति परिचित हैं .
लिहाजा नक्सली सबसे अधिक खौफ इन्हीं से खाते हैं . नक्सल उन्मूलन मुहिम में डीआरजी बस्तर संभाग के सभी सात जिलों में अधिकांश ऑपरेशन को अब लीड करती है . अबूझमाड़ में चलाए गए ऑपरेशन प्रहार-दो में भी इस दस्ते को अहम सफलता मिली . बकौल विवेकानंद सिन्हा, आइजी, बस्तर, नक्सलरणनीति की काट में यह दस्ता सबसे अच्छा साबित हुआ है .
अबूझ पहेली है
अबूझ यानी जिसको बूझना संभव ना हो व माड़ यानी गहरी घाटियां व पहाड़ . यह एक अत्यंत दुर्गम एरिया है . अबूझमाड़ व इसके निवासी आज तक अपने आदिकालीन स्वरूप में हैं . अबूझमाड़ में कितने गांवों में किसके पास कितनी जमीन है, चारागाह या सड़कें हैं या नहीं, अन्य चीजों की उपलब्धता कैसी है, इसका कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है . ये गांव कहां हैं या इनकी सरहद कहां है, यह भी पता नहीं है . अबूझमाड़ दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के नारायणपुर जिले में स्थित है . इसका कुछ भाग महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश में भी आता है .
भारत के छह प्रमुख बाघ आश्रय स्थलइस एरिया में हैं . गूगल मैप से पता चलता है कि इस इलाके में कोई सड़क नहीं है . यहां के गांव भी स्थिर नहीं हैं यानी इनकी स्थान बदलती रहती है क्योंकि यहां रहने वाले माड़िया आदिवासी स्थान बदल-बदल कर बेरवा पद्धति से खेती करते हैं .