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नक्सल विरोधी अभियान कारगर हुआ साबित, सुरक्षाबलों की मुस्तैदी से नक्सली हमले का खतरा हुआ कम

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नक्सल विरोधी अभियान में जुटे सुरक्षाबलों के लिए टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिंव कैंपेन (टीसीओसी) का वक्त भले ही खत्म हो गया है, पर उनकी सतर्कता में कोई कमी नहीं आई है। टीसीओसी का समय मार्च से मई तक होता है। इस दौरान नक्सली खासकर सुरक्षाबलों पर हमले करते हैं। पुलिस पोस्ट आदि को निशाना बनाकर वह अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करते हैं।

सुरक्षा के लिहाज से नक्सल प्रभावित इलाकों में टीसीओसी सर्वाधिक संवेदनशील समय होता है। कई वर्षों से नक्सली इस दौरान सुरक्षाबलों में हमले की फिराक में रहते हैं। लिहाजा मार्च से मई तक का वक्त नक्सल विरोधी अभियान में जुटे सुरक्षाबलों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इस दफे बिहार में नक्सली कोई बड़ी घटना को अंजाम देने में नाकाम रहे, लेकिन छत्तीसगढ़ इलाके में वे सुरक्षाबलों को निशाना बनाने में जरूर कामयाब रहे हैं।

प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन कई वर्षों से मार्च से मई के बीच खास रणनीति के तहत पुलिस पर हमले करते हैं। इसकी कई वजह है। एक तो इस मौसम में जंगल और पहाड़ों में दिक्कतें कम आती हैं। दूसरे नक्सलियों के पास हथियार बंद दस्ता की संख्या ज्यादा होती है। स्थानीय लड़ाके जो काम के सिलसिले में बाहर जाते हैं इस दौरान वापस संगठन में आकर नक्सलियों के साथ हो जाते हैं। सुरक्षाबलों की भाषा में इसे टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिंव कैंपेन का नाम दिया गया है।

संगठन विस्तार और हथियार आदि लूटने के लिए नक्सलियों द्वारा खास रणनीति के तहत इन महीनों में हमले किए जाते हैं। नक्सल प्रभावित राज्यों में कई बड़ी वारदातें इस दौरान हो चुकी हैं। 7 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। यह सुरक्षाबलों पर अबतक का सबसे बड़ा नक्सली हमला था। कई और बड़ी घटनाएं भी इन महीनों में हो चुकी हैं।

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