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डेटा फैक्ट्री में तब्दील होता इंसान!

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Company Helping and Supporting Customer to Success with Care Concept, Person Steps on Graph over a Careful Gesture Hand

फेसबुक, गूगल, ट्वीटर, व्हाट्सऐप आदि कंपनियां अपनी सेवाओं के लिए यूजर से एक भी रुपये नहीं लेतीं, मुफ्त हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इन कंपनियों को चलाने के लिए पैसा कहां से मिलता है. हमें यह समझना होगा कि दुनिया के किसी भी कोने में मुफ्त नाम की कोई भी चीज नहीं होती

तकरीबन एक साल से सोशल नेटवर्किंग की दुनिया का बेताज बादशाह फेसबुक अपने नए सिक्युरिटी फीचर टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के दौरान यूजर्स से उनके एकाउंट को ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए उनके मोबाइल नंबर की मांग कर रहा है. लेकिन बहुत से तकनीकी विशेषज्ञ और गोपनीयता के हिमायती फेसबुक यूजर्स को चेता रहे हैं कि मोबाइल नंबर को एकाउंट में जोड़ने से प्राइवेसी के खत्म होने का खतरा है. मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है, इसके जरिए कोई भी यूजर की गतिविधियों पर निगरानी रख सकता है. इस पर फेसबुक का कहना है कि उसके इस फीचर का मकसद यूजर्स के एकाउंट को ज्यादा सुरक्षित बनाना है. ऑथेन्टिकेशन की इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले यूजर अपने एकाउंट में पासवर्ड डालकर लॉग-इन करता है.

फेसबुक, गूगल, ट्वीटर, व्हाट्सऐप आदि कंपनियां अपनी सेवाओं के लिए यूजर से एक भी रुपये नहीं लेतीं, मुफ्त हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इन कंपनियों को चलाने के लिए पैसा कहां से मिलता है. हमें यह समझना होगा कि दुनिया के किसी भी कोने में मुफ्त नाम की कोई भी चीज नहीं होती, पीछे से जेब में हाथ डाला ही जाता है. इसको समझने के लिए अर्थशास्त्र की फ्री-मार्केट कैपिटलिज्म थ्योरी को समझना होगा. भले ही ये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म खुद को मुफ्त बताते हों, मगर इनकी ज्यादातर कमाई का स्रोत यूजर्स की निजी जानकरियां या डेटा हैं जिसे वे अपनी सहायक कंपनियों को बेच देते हैं और फिर वे इस डेटाबेस का इस्तेमाल विज्ञापन टारगेट करने के लिए करते हैं.