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केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों को अपने साथियों का खून बहाने की ओर ले जा रही है ये टेंशन…

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खबर आती है कि फलां कैंप में केंद्रीय अर्धसैनिक बल के जवान एक दूसरे से भिड़ गए। एक जवान ने अपने कई साथियों का खून बहा दिया। बीच बचाव कराने के लिए आया कमांडर भी मारा गया। बाद में उस जवान ने खुद को भी गोली मार ली। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि वो कौन सी टेंशन है जो इन जवानों को अपने साथियों का खून बहाने की ओर ले जा रही है। खासतौर पर, नक्सल प्रभावित क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के संवेदनशील इलाके और उत्तर-पूर्व में कई ऐसी जगह हैं, जहां नियमित तौर से ऑपरेशन चलते रहते हैं। शिविर में रहने वाले जवानों के पास हर पल एके-47 राइफल रहती है। यही वजह है कि हल्की सी कहासुनी में खून बहने लगता है। अर्धसैनिक बल के एक बड़े अधिकारी ने उस टेंशन का खुलासा किया है, जिसके चलते जवान अपनों का खून बहाने पर आमादा हो जाते हैं। वह टेंशन है ‘लीव रिजर्व’ का न होना। फाइलों में भले ही जवानों को बराबर छुट्टियां मिलती हों, लेकिन ड्यूटी का दबाव इतना ज्यादा होता है कि चाहते भी कंपनी कमांडर उन्हें छुट्टी नहीं दे पाता। नतीजा, यह टेंशन उन्हें खून बहाने जैसा घातक कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है।

एक सप्ताह में मारे गए दस जवान और अफसर…

पिछले एक सप्ताह में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें जवानों ने अपने ही साथियों को मार डाला। झारखंड के बोकारो में सोमवार रात को हुई एक भयावह घटना में सीआरपीएफ के एक अधिकारी सहित दो कर्मियों की मौत हो गई। 226 वीं बटालियन की ‘चार्ली’ कंपनी में हुई इस घटना में दो अन्य जवान भी घायल हो गए हैं। किसी बात को लेकर दो जवानों के बीच आपसी कहासुनी चल रही थी। उनके बीच गाली-गलौच भी हुआ। जब उनका विवाद खत्म कराने के लिए सहायक कमांडेंट बीच में आए तो जवान ने उन्हें भी अपनी एके-47 से निशाना बना दिया। यह कंपनी चुनावी ड्यूटी पर तैनात थी।

वहां मौजूद दो अन्य जवानों को भी गोली लगी है। इससे पहले सोमवार को राजधानी रांची के खेलगांव स्थित परिसर में ठहरी छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स की कंपनी में भी ऐसी ही घटना घटी। सुबह-सुबह खेलगांव परिसर गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। आर्म्ड फोर्स के एक कांस्टेबल ने अपने ही कंपनी कमांडर को एके-47 से भून डाला। बाद में उस जवान ने खुद को भी गोली मारकर आत्महत्या कर ली। पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में आइटीबीपी के एक जवान ने अपने पांच साथियों को गोली मार दी थी।आरोपी सिपाही रहमान खान ने कड़ेनार कैंप की बैरक में अपनी एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी।

अर्धसैनिक बलों में ‘लीव रिजर्व’ का प्रावधान नहीं है सीआरपीएफ के एक अधिकारी जो कि लंबे समय नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात हैं, उन्होंने अमर उजाला डॉट कॉम के साथ खास बातचीत करते हुए कहा, देखिये अभी तक फोर्स में छुट्टी को सबसे बड़ा माना जाता है।जवान 24 घंटे ऑपरेशन में व्यस्त रहते हैं। सामान्य इलाकों में तो फिर भी जवान को कुछ आराम मिल जाता है, लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पूर्ण विश्राम संभव नहीं है। जंगल में ऑपरेशन का कोई समय नहीं होता।वह पांच दिन से दो सप्ताह तक भी चल सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी जवान ऑपरेशन खत्म होने तक अपने कैंप पर वापस नहीं आ सकता। किसी जवान को हादसा होने की स्थिति में ही ऑपरेशन लाइन से बाहर लाया जाता है। ऑपरेशन खत्म होने के बाद जवान अपने कैंप पर पहुंचते हैं कि उन्हें दूसरी जगह पर जाने का फरमान मिल जाता है।

वहां से वापस लौटते हैं तो चुनावी ड्यूटी आ जाती है। रैली, धरना प्रदर्शन और दूसरे आयोजन, ये भी इन्हीं जवानों को पूरे कराने होते हैं। कमांडर चाहते हुए भी सभी जवानों को छुट्टी नहीं दे पाता। हालांकि जवानों को नियमानुसार छुट्टी देने का प्रावधान है, लेकिन व्यवहार में उन्हें वह नहीं मिलती। कभी कमांडर की शर्म से वे अपनी छुट्टी कैंसल करा देते हैं तो कभी कोई दूसरा साथी यह कह देता है कि मुझे ज्यादा जरुरी काम है, तुम बाद में चले जाना। औसतन एक कंपनी में 80 या सौ जवान हैं तो उसमें से 30-35 जवान छुट्टी पर रहते हैं। पांच सात बीमार भी रहते हैं तो सात आठ जवान दूसरे कारणों के चलते ड्यूटी पर नहीं जा सकते। ऐसी स्थिति में कमांडर पर दबाव होता है कि वह किसी भी तरह से जवानों की संख्या पूरी रखे। इसका एकमात्र उपाय यह है कि जवानों की छुट्टियां कैंसल करते रहिए। यही एक ऐसी टेंशन है जो जवान के दिमाग में बैठ जाती है। जंगल में 24 घंटे खतरे का सामना करने वाले जवानों के लिए छुट्टी मंजूर होना उनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। छुट्टी नही मिलने वाले जवानों पर जब कोई दूसरा साथी फब्ती कस देता है तो उसे बर्दास्त नहीं कर पाते। जवान के पास हर पल एके-47 रहती है… विभिन्न राज्यों के पुलिस बलों या आर्मी में इस तरह की घटनाएं कम ही देखने मिलती हैं। वजह, उन्हें ड्यूटी खत्म होने के बाद अपना हथियार जमा कराना होता है। हालांकि कई जगह पर यह संभव नहीं हो पाता।दूसरी ओर, अर्धसैनिक बलों में खासतौर पर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों या आतंकवाद से ग्रसित इलाकों में उनके पास 24 घंटे हथियार रहता है। अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की बात करें तो वहां हर पल जवान के पास एके-47 या एक्स-95 रहती है। उन्हें यह हथियार जमा नहीं कराना पड़ता।वजह, नक्सली कब किस कैंप पर हमला कर दें, कहा नहीं जा सकता।

ऐसे में जब कभी जवानों के बीच कहासुनी होती है तो उसका अंत खून खराबे से होता है। जवान के पास एके-47 होती है और उसके द्वारा चंद सेकेंड में अपने कई साथियों का खून बहा देता है। एक अधिकारी के मुताबिक, जवान पहले से ही टेंशन में होता है और ऊपर से कहासुनी हो जाए।उसके हाथ में एके-47 भी हो तो वह किसी की बात बर्दास्त नहीं करता। यदि किसी जवान के पास हथियार नहीं है तो वह आपसी कहासुनी या हाथापाई तक ही सीमित रहते हैं। सरकार को जवानों की यह टेंशन कम करने के लिए लीव रिजर्व का प्रावधान करना होगा। अर्थात सभी जवानों को तय समय पर छुट्टी मिलती रहे। किसी की छुट्टी केवल इस वजह से कैंसल न हो कि वहां स्टाफ नहीं है, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा।