छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र-तीन राज्यों को जोड़ने वाला सीमावर्ती कस्बा भोपालपटनम आज भी एक ढंग के बस स्टैंड से वंचित है। यह इलाका तीनों राज्यों के बीच व्यापार, परिवहन और जन-संपर्क का अहम केंद्र है, मगर अफसोस की बात है कि यहां यात्री बसों के ठहराव तक की समुचित व्यवस्था नहीं है।
गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा अंतर्राज्यीय बस स्टैंड बनाने की घोषणा के बाद उम्मीदें जगी थीं कि भोपालपटनम को तीन राज्यों की कड़ी के रूप में विकसित किया जाएगा। लेकिन वास्तविकता इसके उलट है। आज भी बसें और टैक्सियां बस्ती के छोटे से अस्थायी बस स्टैंड में ही यात्रियों को उतारती-बैठाती हैं।
यहां गंदगी, अव्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है। यात्रियों को खुले आसमान के नीचे, पेड़ों के नीचे या दुकानों की ओट में घंटों बस का इंतजार करना पड़ता है। बरसात में कीचड़ और गर्मी में धूप-यही यहां की स्थायी स्थिति है।
बस स्टैंड निर्माण के द्वितीय चरण के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति प्राप्त नहीं हो पाई है, जिसके कारण फिलहाल कार्य स्थगित है। उन्होंने बताया कि राज्य स्तर पर सभी पत्राचार और प्रक्रिया पूरी कर ली गई है तथा नगर पंचायत द्वारा निर्धारित राशि भी जमा कर दी गई है। मंत्रालय से अनुमति मिलते ही वृक्षों की कटाई की प्रक्रिया शुरू होगी और भूमि नगर पंचायत को हस्तांतरित कर दी जाएगी.
तीन राज्यों की सीमाओं को जोड़ने वाला भोपालपटनम इंटर-स्टेट ट्रांसपोर्ट हब बन सकता था, लेकिन योजनाओं की लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता ने इसे विकास के नक्शे से लगभग बाहर कर दिया है।आज भी यात्री सड़क किनारे खड़े होकर बस पकड़ने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब एक करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी बस स्टैंड की जमीन तय नहीं हो पाई, तो बाकी विकास कार्यों की उम्मीद किससे की जाए।



