रिलायंस समूह के अध्यक्ष अनिल अंबानी (Anil Ambani) के सितारे पिछले कुछ वक्त से गर्दिश में हैं और अब प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी उनके खिलाफ शिकंजा कस रहा है. मुंबई में अनिल अंबानी की कंपनियों के खिलाफ ED की छापेमारी की कार्रवाई शनिवार को तीसरे दिन भी जारी रही. एजेंसी ने कई स्थानों से बड़ी संख्या में दस्तावेज और कंप्यूटर उपकरण जब्त किये हैं. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी. संघीय जांच एजेंसी ने 24 जुलाई को कथित तौर पर 3,000 करोड़ रुपये के बैंक ऋण धोखाधड़ी से जुड़े धन शोधन मामले के तहत छापेमारी शुरू की थी. इसके अलावा कुछ कंपनियों द्वारा करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितताओं के कई अन्य आरोप भी हैं.
सूत्रों ने बताया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत बृहस्पतिवार को छापेमारी की कार्रवाई शुरू की गई थी और मुंबई में 35 से अधिक परिसरों में से कुछ स्थानों पर यह शनिवार को भी जारी रही.
3000 करोड़ के लोन मामले में छापेमारी
उन्होंने बताया कि ये परिसर 50 कंपनियों और 25 लोगों के हैं, जिनमें अनिल अंबानी समूह की कंपनियों के कई अधिकारी भी शामिल हैं.
ईडी सूत्रों ने बताया कि 2017 से 2019 के बीच यस बैंक से लिये लगभग 3,000 करोड़ रुपये के ऋण के गलत इस्तेमाल के आरोपों में ये छापेमारी की जा रही है.
ED की कार्रवाई का असर नहीं: रिलायंस
समूह की दो कंपनी ‘रिलायंस पावर’ और ‘रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर’ ने शेयर बाजार को बृहस्पतिवार को दी अलग-अलग सूचना में कहा कि ईडी की कार्रवाई का उनके व्यवसाय संचालन, वित्तीय प्रदर्शन, शेयरधारकों, कर्मचारियों या किसी अन्य हितधारक पर कोई असर नहीं पड़ा है.
कंपनियों ने कहा, ‘‘मीडिया में आई खबरों में जो जानकारी दी गई है वह 10 साल से भी पुरानी कंपनी ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स लिमिटेड’ (आरसीओएम) या ‘रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड’ (आरएचएफएल) के लेन-देन से संबंधित आरोपों से जुड़ी प्रतीत होती हैं.”
रिश्वत के लेनेदेन का संकेत!
सूत्रों ने बताया कि जांच में यह सामने आया है कि ऋण दिए जाने से ठीक पहले, यस बैंक के प्रवर्तकों को उनके संस्थानों में धनराशि ‘‘प्राप्त” हुई थी जो ‘‘रिश्वत” के लेनदेन का संकेत देता है. एजेंसी ‘‘रिश्वत” और ऋण से जुड़े मामले की जांच कर रही है.
सूत्रों ने बताया कि संघीय एजेंसी यस बैंक द्वारा रिलायंस अंबानी समूह की कंपनियों को दी गई ऋण स्वीकृतियों में पिछली तारीख के ऋण दस्तावेज, बैंक की ऋण नीति का स्पष्ट उल्लंघन कर बिना किसी उचित जांच या ऋण विश्लेषण के निवेश प्रस्तावित करना जैसे ‘‘घोर उल्लंघनों” के आरोपों की जांच कर रही है.
सूत्रों ने बताया कि कथित तौर पर इन ऋणों को संबंधित संस्थाओं द्वारा समूह की कई कंपनियों और मुखौटा कंपनियों में गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया.
सूत्रों ने बताया कि एजेंसी कमजोर वित्तीय स्थिति वाली संस्थाओं को दिए गए ऋणों, ऋणों के उचित दस्तावेजीकरण और उचित जांच-पड़ताल के अभाव, समान पते वाले ऋणदाताओं और उनकी कंपनियों में समान निदेशकों आदि के मामलों की भी जांच कर रही
है.
जनता के रुपयों का गलत इस्तेमाल!
उन्होंने बताया कि धनशोधन का यह मामला सीबीआई द्वारा दर्ज कम से कम दो प्राथमिकियों और राष्ट्रीय आवास बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए) तथा बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा साझा की गई रिपोर्ट से जुड़ा है.
सूत्रों के अनुसार इन रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि बैंकों, शेयरधारकों, निवेशकों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों को धोखा देकर जनता के रुपयों का गलत तरीके से इस्तेमाल करने या हड़पना की यह एक ‘‘पूर्व-नियोजित और सोच-समझी साजिश” थी.
केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद को सूचित किया था कि भारतीय स्टेट बैंक ने अंबानी के साथ-साथ आरकॉम को भी ‘धोखाधड़ी’ के रूप में वर्गीकृत किया है और वह सीबीआई में शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया में है.
1,050 करोड़ का बैंक ऋण भी जांच के दायरे में
सूत्रों ने बताया कि कुछ ‘अघोषित’ विदेशी बैंक खातों और संपत्तियों के अलावा आरकॉम और केनरा बैंक के बीच 1,050 करोड़ रुपये से अधिक का बैंक ऋण ‘धोखाधड़ी’ भी ईडी की जांच के दायरे में है.
उन्होंने बताया कि रिलायंस म्यूचुअल फंड ने भी एटी-1 बांड में 2,850 करोड़ रुपये का निवेश किया है और संघीय एजेंसी को इसमें ‘परस्पर लाभ पहुंचाने’ का संदेह है.
एडिशनल टियर 1 (एटी-1) बैंकों द्वारा अपना पूंजी आधार बढ़ाने के लिए जारी किए जाने वाले स्थायी बॉन्ड होते हैं और ये उच्च ब्याज दर वाले पारंपरिक बॉन्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरे होते हैं. रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े लगभग 10,000 करोड़ रुपये के कथित ऋण कोष के दुरुपयोग का मामला भी एजेंसी की जांच के दायरे में है.
माना जा रहा है कि ‘रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड’ (आरएचएफएल) के संबंध में सेबी की एक रिपोर्ट भी ईडी की जांच का आधार बनी.
बाजार नियामक के निष्कर्षों के अनुसार, आरएचएफएल द्वारा दिए गए कॉर्पोरेट ऋणों में वृद्धि देखी गई जो वित्त वर्ष 2017-18 में 3,742.60 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 में 8,670.80 करोड़ रुपये हो गए.
कंपनियों ने शेयर बाजार को दी जानकारी में यह भी कहा कि अनिल अंबानी न तो ‘रिलायंस पावर’ और न ही ‘रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर’ के बोर्ड में थे और उनकी ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स’ या ‘रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड’ से कोई व्यावसायिक या वित्तीय संबंध नहीं हैं.
कंपनियों ने कहा कि ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स’ या ‘रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड’ के खिलाफ की गई किसी भी कार्रवाई का ‘रिलायंस पावर’ या ‘रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर’ के संचालन व प्रबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा.rtfgvb