पत्थरगढ़ी के पीछे..झारखंड की तर्ज पर ही छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा में पत्थरगढ़ी की चर्चा तेज है। दरअसल पत्थरगढ़ी की आड़ में राजनीति का एक नया दांव खेला जा रहा है। ग्राम सभा की ताकत के सहारे कुछ स्थानों पर पत्थरगढ़ी को महिमा मंडित करते हुए संविधान की पांचवी अनुसूची की नई व्याख्या की जा रही है। भोले-भाले आदिवासी संविधान की परिभाषा तो नहीं जानते हैं पर उनके मानस पटल में कुछ लोगों द्वारा नया संविधान लिखने का कुचक्र रचा जा रहा है। हो सकता है कि पत्थरगढ़ी करना आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विरासत हो लेकिन इन्हीं घटनाओं को लेकर राजनीति का नया दांव खेलने का प्रयास शुरू हो गया है।
भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुच्छेद 244 (1) अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के अधिकार का कानून है। अनुसूचित क्षेत्र (शेड्यूल फाइव एरिया) में पारंपिरक ‘ग्राम सभाÓ का अपना नियंत्रण और प्रशासन होता है। यह ठीक है कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों के बीच नियंत्रण एवं प्रशासन के लिए पी-पैसा या पैसा कानून 1996 की धारा 40 के तहत स्वायत्तशासी परिषद नियमावली राज्यशासन को बनाना था जो विधि सम्मत था पर आज तक लागू नहीं किया गया आदिवासी इलाकों मेंशांति औ्र सुशासन के लिए अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए ‘ग्राम सभाÓ को सारे अधिकार दिया जाना था। आदिवासी क्षेत्रों में जिस तरह उद्योगपतियों को आमंत्रित किया जा रहा है उससे भी आक्रोश है।
छत्तीसगढ़ सहित कुछ अनुसूचित जनजाति राज्यों में एक लाख एकड़ से भी अधिक आदिवासी क्षेत्रों की जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। सवाल फिर उठ रहा है कि जब कोई भी अनुसूचित क्षेत्र की जमीन अधिग्रहण नहीं कर सकता तो फिर कैसे बाहरी उद्योगपतियों को जमीन मुहैया कराई जा रही है? बहरहाल आदिवासियों की अपनी समस्याएं है, उन्हें पर कुछ लोगों के बहकावे में आकर पत्थरगढ़ी जैसा कदम सीधे-सीधे नहीं उठाना चाहिए सरकार को भी आदिवासियों की समस्याओं पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। ज्ञात रहे कि कुछ आदिवासी गांव में कुछ लोग पत्थर गड़ाकर अपनी गांव की सीमा तय कर रहे हैं और ग्रामीणों को उकसा रहे हैं कि उनकी अनुमति के बिना शासन-प्रशासन, पुलिस और बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है।