अतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहने वालों का अब तो नक्सलियों की करतूत की वजह से बेटियों के हाथ भी पीले नहीं हो पा रहे हैं और रिश्ते भी आने से कतराने लगे हैं। रिश्तेदार नक्सल क्षेत्र का नाम सुनते ही रिश्ते जोड़ने से मना करने लगे हैं। बड़ी चिंताएं हो गई है। वरिष्ठजनों के माथों पर चिंताएं की लकीरे स्पष्ट दिख रही है और तो और नक्सली दहशत के चलते क्षेत्र में लड़कियों की उम्र बढ़ने लगी है और विवाह नहीं हो पा रहे हैं।
गंभीर विषय बनता जा रहा है हालांकि दल्लीराजहरा, कुसुमकसा, डौंडी और आसपास का क्षेत्र नक्सल दहशत क्षेत्र नहीं है न ही यहां कोई बड़ी घटनाएं घटी है। परंतु शासन-प्रशासन के पास बने मानचित्र में महामाया और आसपास का क्षेत्र नक्सल घोषित क्षेत्र किया गया है।
नक्सली क्षेत्र कहलाने की वजह से बाहरी लोग क्षेत्र में आने से कतराने लगे हैं और बड़े उद्योगपति निवेश करने की बजाए दूसरे क्षेत्र में जाने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर राजहरा शहर की जनसंख्या जहां 1।50 लाख के आसपास थी वहीं आज 41 हजार में सिमट कर रह गई है। अगर समय रहते बेटियों की हाथ पिले नहीं हो सकते तो भयंकर स्थित बन सकती है।
नक्सली घटनाओं एवं उनके अतिरंजित समाचारों के प्रकाशन से दल्लीराजहरा, कुसुमकसा, डौण्डी और आसपास का क्षेत्र नक्सल दहशत क्षेत्र के विभिन्न समाजों के मध्य अपने विवाह योग्य युवक-युवतियों का संबंध बाहर करना एक दुष्कर कार्य हो गया है, और सभी समाज ऐसी त्रासदी भुगतने के लिए विवश हैं।
दल्लीराजहरा, कुसुमकसा, डौण्डी और आसपास का क्षेत्र नक्सल दहशत क्षेत्र में मूल आदिवासी समाज के साथ पिछले 100 वर्षों से विभिन्ना समाज के लोग भाईचारे के साथ निवासरत हैं और इनके मध्य विवाह योग्य युवक-युवतियों का संबंध भी यहां और इस क्षेत्र से बाहर होता रहता था, अपने बच्चों का संबंध करने के लिए वे यहां भी प्रयास करते हैं, लेकिन मन मुताबिक संबंध न मिलने से बाहर करने का प्रयास करते हैं।
अभी तक बीते वर्षों में ऐसी कोई समस्या उनके सामने नहीं आई थी, लेकिन पिछले 8-10 वर्षों में स्थिति में विपरीत गुणात्मक परिवर्तन आया है और अब बाहर के लोग दल्लीराजहरा का नाम सुनते ही सिहर कर कहते हैं कि, नहीं हमें अपने बच्चों का संबंध दल्लीराजहरा में नहीं करना है।
वहां तो बहुत अधिक अशांति है। इस मानसिकता का अभिशाप दल्लीराजहरा में निवासरत हर समाज के लोग भुगत रहे हैं, लेकिन विडंबना है कि बाहरी लोगों को वस्तु स्थिति की जानकारी देने वाला कोई भी प्रचार माध्यम नहीं है।यहां के लोग लाख दुहाई देते रहें कि नक्सली समस्या दल्लीराजहरा के विशाल भू-भाग के राजहरा से 100 से 200 किलोमीटर के सुदूर वनाचंल में होती है और यहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं है।
जीवन सरस है, शांतिमय है और खुशहाल है, यदि बाहरी लोग एक बार स्वयं राजहरा आकर अवलोकन करें, तो स्थिति स्वयं ही प्रमाणित हो जायेगी। यह अकाट्य सत्य है कि शहरी इलाकों में शांति, समृद्धि और खुशहाल जनजीवन है, राजहरावासियों का मानना है कि यह सब आकर देखने के बाद बाहर के लोगों की मानसिकता निश्चित रूप से परिवर्तित होगी। क्षेत्रवासियों को आगे आना होगा और आमजनों की गलत फहमियों को दूर करना होगा।